आज के समय में जब भी भारत देश का नाम लिया जाता है तो सबसे पहला ख्याल आता है यहां का लोकतंत्र ।लोकतंत्र अथवा प्रजातंत्र (शाब्दिक अर्थ – जनता का शासन ) मुख्य रूप से एक ऐसी शासन व्यवस्था है जो “जनता द्वारा ,जनता के लिए , जनता का शासन” है। जिसमें सभी वर्गों , जातियों , समुदायों के लोगों की बराबर की भागीदारी होती है अर्थात सम्पूर्ण देश की जनता की सहभागिता द्वारा किया गया शासन। इस व्यवस्था में जनता अपने प्रतिनिधि को स्वयं शासक के रूप में चुनावी प्रकिया के माध्यम से चयनित करती है तथा कोई अन्य बाहरी शक्ति उन पर राज नहीं कर सकती । लोकतंत्र शासन व्यवस्था की श्रेष्ठता को सभी स्वीकार करते हैं शायद इसलिए आज विश्व का प्रत्येक राज्य लोकतांत्रिक होने का दावा करता है।
भारत ने 15 अगस्त 1947 को आजादी प्राप्त की । आजादी के बाद भारत ने लोकतंत्र की संसदीय प्रणाली को चुना । भारत की आज़ादी ने विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की नींव रखी। हालांकि अमेरिका का लोकतंत्र सबसे पुराना है ,परन्तु 1965 तक वह अश्वेत लोगों को मताधिकार प्राप्त नहीं था । परंतु भारत ने 1950 से ही सार्वभौमिक वयस्क मताधिकर दे दिया था ।
जैसा कि बाबा साहब अम्बेडकर ने कहा है- ‘ लोकतंत्र का अर्थ है, एक ऐसी जीवन पद्धति जिसमें स्वतंत्रता, समता और बंधुता समाज – जीवन के मूल सिद्धांत होते हैं ‘ अर्थात बाबा साहब पूर्णतः समानता और भाईचारे के पक्षधर थे।
मानव जीवन के दो मुख्य स्तंभ हैं – पुरुष एवं स्त्री। दोनों बराबर जिम्मेदारियां साझा करते हैं और दोनों एक दूसरे के पूरक भी हैं ।भारतीय लोकतंत्र ने भी इन दोनों को बराबर के अधिकार दिए। भारतीय लोकतंत्र जनता की भागीदारी को सर्वोच्च एवम् सम्पूर्ण मानता है । दोनों ही समाज की अभिन्न कड़ी हैं । दोनों ही समान रूप से देश के विकास में अपनी भागीदारी दर्ज करा रहे हैं तथा लोकतंत्र के पूरक भी समान रूप से हैं । बेशक लिंग अनुपात के क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों के मुकाबले पीछे हैं ,किन्तु मतदान करने में महिलाएं पुरुषों से भी आगे निकल रही हैं । साठ के दशक में 1000 पुरुष मतदाता पर 715 महिलाएं होती थी जो अब बढ़कर 803 हो गई हैं। महिलाओं को लोकतंत्र में आगे बढ़कर आना होगा, क्योंकि लोकतंत्र को मजबूत करने में इनकी भी अहम भूमिका है।
प्रारंभ से ही विभिन्न समाज की महिलाओं को दबाने का हर संभव प्रयास किया जाता था। आलोचना , परतंत्रता और पुरुष के समक्ष कोई मजबूत आधार न होने के कारण महिलाओं ने अनेक कष्टों का सामना किया। यहां तक कि उन्हें मूलभूत जनमधिकरों से भी वंचित रखा गया । भारत में संसद में महिला प्रतिनिधित्व की स्थिति ठीक नहीं है । इस मामले में भारत 193 देशों की सूची में 149वें स्थान पर आता है ।भारत की चुनावी राजनीति में महिलाओं की भागीदारी उनके अनुपात से कम होना स्वस्थ लोकतंत्र के लिहाज से चिंता का विषय है। इसका एक मुख्य कारण भारत की पितृ – सत्तात्मक व्यवस्था है , जिसका प्रभाव महिलाओं के प्रतिनिधित्व पर पड़ा है ।
महिलाएं समाज के कल्याण व समाज निर्माण में अनेक तरह से योगदान दे रही हैं – जैसे कि शिक्षा के क्षेत्र में,चिकित्सा के क्षेत्र में, संस्कृति के क्षेत्र में आदि अनेक क्षेत्रों में महिलाओं का योगदान सर्वोपरि है। इतना ही नहीं राजनीति से लेकर सेना में भी से महिलाओं ने अनेक अविश्वसनीय मुकामों को हासिल किया है । यहां हम कमला नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी, हैला थॉर्निंग, एलेन जॉनसन सिर्लीफ, पुनीता अरोड़ा, हरिया कौर देओल, ग्रेटा थंबर्ग, जविंदा अर्डरन आदि जैसी अनेक महिलाओं का उदाहरण दे सकते हैं । आधुनिक काल में एवम् वर्तमान समाज में महिलाएं समाज सेवा, राष्ट्र निर्माण और राष्ट्र उत्थान के अनेक कार्यों में लगी हैं ।
हालांकि महिलाओं की चुनावी राजनीति में भागीदारी 33 फीसदी सुनिश्चित करने के लिए संसद में “महिला आरक्षण बिल” भी लाया गया है ,किन्तु एक अर्से से यह लटका पड़ा है । इसके बावजूद भी राजनीति में समय के साथ साथ महिलाओं कि भूमिका भी विस्तृत हुई है । अनेक प्रयासों और साहस के बाद “नारी शक्ति” का बिंदु समाज में स्थापित हो पाया । Charlotte Bronte जैसी कवियित्रियों ने -“.मैं कोई पक्षी नहीं हूं और कोई भी जाल मेरा नहीं है, मैं एक स्वतंत्र इंसान हूं जो एक स्वतंत्र इच्छाशक्ति के साथ है” जैसे लेखों से महिलाओं को प्रेरित करने का प्रयास किया ।
वर्तमान दौर में भी महिलाएं अग्रणी हैं।विधान सभा तथा राज्य सभा से लेकर ग्राम पंचायत के चुनाव तक हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी लगातार बढ़ रही है । जनता में महिलाओं को एक कुशल शासक की दृष्टि से देखा जाता है। सुषमा स्वराज, जे जयललिता , सोनिया गांधी , प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, शीला दीक्षित,मीरा कुमार , अगाथा संगमा , वसुंधरा राजे आदि अनेक महिला नेता हैं जिन्होंने समय समय पर राजनीति के विभिन्न क्षेत्रों में अपना प्रत्यक्ष योगदान दे भारतीय राजनीति को नए मुकाम तक पहुंचाने का प्रयास किया है । इनके अथक प्रयासों के कारण ही आज भारतीय राजनीति एक नया रूप धारण कर रही है।
महिलाओं की भागीदारी कार्यपालिका, न्यायपालिका तथा विधनपालीका प्रत्येक क्षेत्र में अत्यंत आवश्यक है। महिलाओं ने स्वयं आगे बढ़कर इन क्षेत्रों में सराहनीय कार्य भी किए है जिनके माध्यम से भारतीय लोकतंत्र मजबूत हुआ है। भारतीय न्यायपालिका भी लोकतंत्र का एक अहम हिस्सा है। किन्तु न्यायपालिका में महिला न्यायधीशों का प्रतिनिधित्व बहुत ही कम है। भारतीय संसद में इसे एक चिंता का विषय में हुए महिला न्यायधीशों की संख्या बढ़ाने की सिफारिश की है। सुप्रीम कोर्ट में भी महिला न्यायधीशों की संख्या बढ़ाकर 3 कर दी गई है। आर. बनुमथी, फातिमा बीबी, इंदिरा बैनर्जी , रुमा पाल आदि असी अनेक महिला न्यायाधीश हैं जिन्होंने सामाजिक बेड़ियों को तोड़ते हुए ऐतिहासिक कीर्तिमान स्थापित किए ।
न केवल उच्च स्तर पर बल्कि निम्न स्तर पर भी महिलाओं ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दे कर भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई है। महिलाओं की भागीदारी के बिना भारतीय लोकतंत्र की कल्पना करना भी व्यर्थ है। महिला पुरुषों के समान ही इस देश की तरक्की के लिए महत्वपर्ण हैं ।महिलाएं सामाजिक संदर्भों से भी लगातार जुड़ी रही हैं और न केवल पुरुष वरन् परिवार ,समाज एवं राष्ट्र ने भी इसे गर्व के साथ स्वीकार है। वर्तमान में नारी शक्ति का फैलाव इतना घनीभूत हो गया है कि कोई भी क्षेत्र इनके संपर्क से अछूता नहीं रहा है । आज नारी पुरुष के समान ही शिक्षित, सफल और सक्षम है। चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो, चिकित्सा, सेना, पुलिस, प्रशाशन, व्यापार, समाज सुधार, पत्रकारिता, मीडिया एवम् कला का क्षेत्र हो नारी की उपस्थिति, योग्यता एवम् उपलब्धियां स्वयं अपना प्रत्यक्ष परिचय प्रस्तुत कर रही हैं। घर परिवार से लेकर समाज, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं कि कृति पताका लहरा रही हैं । आने वाले समय में महिलाएं समाज और देश के विकास के लिए सराहनीय प्रयास करती रहेंगी।
अतः देश के प्रत्येक क्षेत्र में उनकी हिस्सेदारी महत्वपूर्ण है। तभी देश का विकास संभव है । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा दिया गया नारा “सबका साथ, सबका विकास” इसी पहलू की तरफ इशारा करता है। इसी संदर्भ में समय समय पर राजनीतिक, न्यायिक एवं राज्य स्तर पर महिलाओं कि भागीदारी को बढ़ाने के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं। आगे भी महिलाओं की भागीदारी में बढ़ोतरी को सुनिश्चत करने के लिए अनेक रास्ते खोले जा सकते हैं । देश की सुरक्षा व विकास के क्षेत्र में महिलाओं का सम्मान व उनकी भागीदारी एक महत्वपूर्ण तत्व है। इसलिए प्रत्येक राष्ट्र महिलाओं को हर क्षेत्र में आगे बढ़ाने के अनेक प्रयास कर रहे हैं। सम्पूर्ण विश्व इस बात को मान चुका है कि लोकतंत्र में महिलाओं कि भागीदारी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी पुरुषों की , इनके बिना एक सम्पन्न राष्ट्र की परिकल्पना असंभव है । देश के विकास और संपन्नता के लिए महिलाओं की लोकतंत्र में बराबर की भागीदारी अत्यंत आवश्यक है ।
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well written .keep it up
also tell points that women dont need empowerment but men needs to change their mindset to see women .