9 फरवरी 2016, यही वो तारीख है जिस दिन हुए घटनाक्रम ने गांव से स्कॉलरशिप पर एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी में पढ़ने आए हुए छात्र को रातों-रात देश की सुर्खियों में ले आया | आप लोग समझ ही गए होंगे यहां पर बात किसकी होने वाली है, और अगर नहीं समझे हैं तो याद दिलाने के लिए बहुत सारे टैग है।
लोकतंत्र का ठेकेदार, टुकड़े-टुकड़े गैंग का लीडर या देशद्रोही…. हम बात कर रहे हैं कन्हैया कुमार की ।
कन्हैया कुमार बिहार राज्य के बेगूसराय जिले से आते हैं और इसी जिले से लोकसभा इलेक्शन 2019 में चुनाव हार चुके हैं, राजद्रोह का आरोप लगने के बाद से आए दिन किसी न किसी वजह से चर्चा में बने रहते हैं फिलहाल वह चर्चा में बने हुए हैं अपनी CAA-NPR के खिलाफ जन गण मन यात्रा की वजह से और उस दौरान उन पर हुए हमलों की वजह से।
कन्हैया कुमार और उनके काफिले पर अब तक इस यात्रा के दौरान 7 से अधिक बार हमले हो चुके हैं l लगातार हो रहे हमलों के बाद बिहार सीपीआई प्रदेश अध्यक्ष सत्यनारायण सिंह ने कहा कि यदि सरकार ने कन्हैया कुमार को उचित सुरक्षा नहीं प्रदान करवाई तो वे लोग प्रदर्शन करेंगे l
अब सवाल यहां पर यह उठता है कि क्या वाकई कन्हैया बार-बार टारगेट किए जा रहे है? क्या बीजेपी व अन्य पार्टियां कन्हैया को अपने राजनीति के लिए खतरे की तरह देखते हैं?
यहां पर एक सवाल यह भी बनता है कि कन्हैया पर जो राजद्रोह का मुकदमा है जिस पर वह बार-बार कहते आ रहे हैं कि उनके खिलाफ प्रोपेगेंडा किया जा रहा है और यह बीजेपी का फैलाया हुआ प्रोपेगंडा है तो कहीं क्या अब यह प्रोपेगेंडा बीजेपी पर उल्टा पड़ता नजर आ रहा है जिस प्रकार से कन्हैया की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है?
पहली बात तो यह कि अभी तक यह साबित नहीं हुआ है कि कन्हैया देशद्रोही है या नहीं परंतु जिस प्रकार से उनके नाम के आगे उपाधियों का प्रयोग किया जा रहा है और जिस प्रकार से काफी बड़ा मीडिया का हिस्सा उनको इस तरह से प्रदर्शित कर रहा है कि ऐसे लोगों को तो मार देना चाहिए अगर आप अभी भी बैठ कर एक बार यूट्यूब पर सर्च कीजिएगा तो आपको ऐसे कई सारे वीडियो मिल जाएंगे जिनमें उनको जान से मार देने की बात बार-बार कही जा रही है|
यह भी उन कई कारणों में से एक है जिन कारणों से लोकसभा चुनाव में बेगूसराय में कन्हैया की हार हुई वह भी कोई छोटी-मोटी हार नहीं चार लाख के वोटों के बड़े अंतर की हार और इस हार का सबसे बड़ा कारण था विपक्ष के बीच वोटों का बंटवारा |
जो भी ऊंची जातियों के बीजेपी के वोटर माने जाने थे, उनका वोट बीजेपी प्रत्याशी गिरिराज सिंह को मिला परंतु जो गरीब मुस्लिम व निचले तबके के लोगों के वोट थे, वे आरजेडी प्रत्याशी तनवीर हसन व सीपीआई प्रत्याशी कन्हैया कुमार के बीच आपस मैं बँट गये|
वामपंथ, जो भारत में विलुप्त सा हो गया था, उसे कन्हैया व उसकी बढ़ती लोकप्रियता से नए आयाम मिले हैं l कई कयास लगाए जा रहे थे कि शायद आगामी बिहार चुनाव में कन्हैया सीएम पद के दावेदार हो सकते हैं परंतु हाल ही में आउटलुक मैगजीन के लिए दिए गए अपने इंटरव्यू में कन्हैया ने इन सभी बातों का खंडन किया और कहा पार्टी जो भी फैसला लेगी वही सर्वोपरि होगा और मैं मुख्यमंत्री पद का कोई दावेदार फिलहाल नहीं हूँ।
27 फरवरी को पटना के गांधी मैदान में अपनी रैली के दौरान कन्हैया कुमार ने कहा कि मैंने पिछले दिनों में अपनी यात्रा के दौरान 4000 किलोमीटर 62 रैलियां 38 जिले पूरे घूम लिये इस सब के बाद भी उनका ऐसा कहना कि मेरा आगामी बिहार चुनाव में कोई रोल नहीं होगा यह प्रश्न चिन्ह है |
वहीं बाकी पार्टियाँ भी कन्हैया के खिलाफ अपनी पूरी तैयारी कर चुकी है जब कन्हैया देश में रैलियां कर रहे थे, उसी समय बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एनडीए गठबंधन में होते हुए भी NPR में संशोधन किया |
इसी समय दिल्ली सरकार ने भी कन्हैया के लिए खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया है, हैदराबाद में अपने पिछले इंटरव्यू में कन्हैया कुमार ने कहा था कि
साउथ दिल्ली कोर्ट की मजिस्ट्रियल इंक्वायरी के दौरान यह लगभग साबित हो चुका था कि जिस वीडियो के बुनियाद पर उन पर देशद्रोह का आरोप लगाया जा रहा है उस वीडियो में जिस व्यक्ति को कन्हैया बताया जा रहा था ना ही उसकी आवाज कन्हैया से मेल करती थी और ना ही उसका चेहरा व उसका गला भी अलग दिखाई दे रहा था परंतु जानबूझकर इतने समय तक फैसले को लटकाया गया |
एस. मुरलीधरन, जो कि दिल्ली हाई कोर्ट में जज थे हाल ही में उनका तबादला पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट में कर दिया जाता है कई लोगों का मानना है कि उनका यह तबादला दिल्ली दंगों में उनके द्वारा दिल्ली पुलिस को लगाई जाने वाली फटकार की वजह से हुआ है लेकिन यह भी सच है कि यही वह न्यायाधीश थे जो कन्हैया के मुकदमे में फैसला सुनाने वाले थे और कई लोगों का मानना था कि उनका फैसला कन्हैया के पक्ष में जा सकता है तो कहीं ना कहीं शायद मंच पहले ही सज चुका था |
इन सब बातों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि कहीं ना कहीं अन्य पार्टियों के लिए एक प्रबल दावेदार के रूप में कन्हैया कुमार सामने आए है लेकिन वही कन्हैया को भी यह समझना होगा व बेगूसराय की अपनी हार से यह सीख लेनी होगी कि उनकी जो भी लोकप्रियता है वह कहीं ना कहीं युवाओं में व सोशल मीडिया में अधिक है बिहार के गांवों में नहीं|
उन्हें यह समझना होगा कि सिर्फ कुछ मंच पर गरीबों की बात करने से रैलियां करने व कुछ मीडिया कॉन्क्लेव अटेंड कर लेने भर से वह कोई नेता नहीं बन जाएंगे टीवी में कुछ बहसें जीतकर अपनी बातों व तथ्यों से जिस प्रकार लोगों को प्रभावित करते हैं उन्हें जमीन में जाकर गरीबों के लिए वही काम करना भी पड़ेगा |
जो लोग उनको सुन नहीं पाते जो लोग स्मार्टफोन नहीं चलाते हैं उनके बीच में उनको जाकर मिलना पड़ेगा तभी लोग उन्हें पहचान पाएंगे जिस तरह बाकी लोग पहचानते हैं |
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