वॉइस ऑफ मार्जिन एक्सक्लूसिव : राजकुमारी हेंद बिंत फैसल अल-कासिमी से इन्टरव्यू ।
कोरोनावायरस के बढ़ते मामलों के साथ, इस्लामोफोबिया ने भारत में एक नई उछाल ली है।भारत में ट्विटर का इस्तेमाल मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने और अमानवीय बनाने लिए ज़ोर शोर से हो रहा है ।सोशल मीडिया पर पुराने और नक़ली वीडियो का इस्तेमाल कर के हर दिन नई साजि़श की अफ़वाहें फैलाई जा रही हैं , केवल यह दिखाने के लिए कि मुसलमान कैसे कोरोना वायरस फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।राजकुमारी हेंद बिंत फैसल अल-कासिमी उन कुछ प्रमुख आवाज़ों में से थीं, जिन्होंने ऐसे काफ़ी लोगों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के साथ कानूनी करवायी की भी पहल की। उन्होंने भयावह और इस्लामोफ़ोबिक ट्वीट्स करने वाले कई अकाउंट्स का सामना किया। उनमें से कई अकाउंट ऐसे भारतीयों के थे जो खाड़ी देशों में काम कर रहे थे।
वॉयस ऑफ मार्जिन के संस्थापक द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन साक्षात्कार में, राजकुमारी हेंद बिंत फैसल अल-कासिमी ने कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण सवालों के जवाब दिए।
प्रश्न – अपने ट्वीट में, आपने यूएई में अभद्र भाषा के खिलाफ कानूनों का उल्लेख किया है।आपको कैसे लगता है कि उन कानूनों ने देश में शांति और सद्भाव बनाए रखने के पक्ष में काम किया है?और यूएई वहां रहने वाले भारतीयों के बीच नफ़रत के इस प्रसार को कैसे संभालने वाला है?
उत्तर – यूएई अपनी न्याय प्रणाली में आंख मूंदकर काम करता है, जहां अगर कोई भी नफरत फैलाता है उस पर जुर्माना लगता है।मैंने अपने ट्विटर पर इसे केवल यह दिखाने के लिए पोस्ट किया कि यह स्थानीय और गै़र-स्थानीय लोगों पर भी लागू होता है। यह यहां की धरती पर शांति बनाए रखने में सफ़ल साबित हुआ है।
प्रश्न – कई मौक़ों पर आपने भारत के प्रति अपने प्रेम और इसकी जीवंत संस्कृति के बारे में बात की है।इसलिए, जब आप इन लोगों के बीच आते हैं, जो एक विशेष समुदाय से बहुत नफ़रत करते हैं, तो इससे आपको उस देश के बारे में कैसा महसूस होता है, जिसकी आपने इतनी उच्च प्रशंसा की थी?
उत्तर – मैं भारतीयों से प्यार करती हूं क्योंकि मेरी परवरिश उनके द्वारा और उनके साथ हुई है, और मेरे देश का 30% लोग भारतीय हैं।मैं भारत में नफ़रत फैलाने वाले इन सभी लोगों से परिचित नहीं हूँ और हैरान हूँ कि यह अब संयुक्त अरब अमीरात (UAE) तक पहुँच गया है। यहां इसकी अनुमति कभी नहीं दी जाएगी, और ख़ुदा भारत को ऐसे लोगों से बचाएंगे जिनके डीएनए में कुछ भी भारतीय नहीं है।मैं उनके प्रति क्रोधित या घृणित नहीं हूं, मैं दुखी हूं, और मेरी इच्छा है कि मैं इसको कम करने के लिए और अधिक कर सकूं।मैं भारत में शांति के लिए प्रार्थना करती हूं और भारत ने बहुत बुरा देखा है, लेकिन मुझे उम्मीद है कि समय बीतने के साथ यह सब भी बीत जाएगा और यह नफ़रत का यह धुंधलका भारत से दूर हो जाएगी।
प्रश्न – क्या आपको लगता है कि यह किसी भी तरह से भारत और यूएई के बीच संबंधों को प्रभावित करने वाला है?
उत्तर – यूएई और भारत के बीच संबंध बहुत स्वर्णिम है, जिसे लोहे की ताक़त से जोड़ा गया है। हमारे सामान्य हित के रिश्ते हज़ारों साल नहीं तो सदियों के ज़रूर हैं ।व्यवसाय जारी रहते हैं, लेकिन यह सोचना ग़लत होगा कि मुसलमानों के खिलाफ हो रहे चयनात्मक क्रूरता और बहिष्कार को दूसरे मुसलमान अनदेखा कर देंगे ।चौंकाने वाली बात यह है कि ऐसा ही कुछ पहले हिटलर के नाज़ी दौर में होता था , जहाँ हमने देखा है कि कैसे उन्होंने यहूदियों का तब तक बहिष्कार किया ,जब तक वो नज़रबंद कर के एकाग्रता शिविरों में नहीं पहुँचा दिए गए।
प्रश्न – आप इस पूरे मामले पर भारत सरकार की प्रतिक्रिया के बारे में क्या सोचते हैं?
उत्तर – भारत सरकार के प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीयों को एकजुट करने के लिए एक शांतिपूर्ण नोट ट्वीट किया।हालाँकि मुझे अभी भी भारतीय चैनलों पर कुछ प्रमुख राजनीतिक नेताओं द्वारा मुसलमानों का बहिष्कार और शारीरिक शोषण और गाली देना अब भी दिख रहा है।कुछ लोग 2021 या 2024 तक मुस्लिमों और ईसाइयों के मिटने की उम्मीद करते हैं। जब मैंने इस पर सवाल उठाया, तो उन्होंने कहा, यह बस इस्लाम और ईसाई धर्म से हिंदू धर्म की ओर वापसी होगी। धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के मुक्त अभ्यास के लिए कितना कुछ किया जा रहा है!
प्रश्न – भारत में इस्लामोफोबिक्स को तब्लीगी जमात के रूप में एक नया मोहरा मिला था। उन्हें इस तरीके से निशाना बनाया गया था जैसे कि वे कोरोना वायरस के फैलने के एकमात्र स्रोत वही थे, भले ही एक ही समय के दौरान कई अन्य धार्मिक आयोजन हुए हों।जब ऐसा कुछ होता है, तो आपको क्या लगता है कि दुनिया के बाक़ी हिस्सों में भारत में मुसलमानों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार के बारे में क्या प्रभाव पड़ता होगा ?
उत्तर – जिन मुस्लिम विद्वानों ने संगरोध ( quarantine ) के पालन करने से इनकार किया, वे ग़लत थे।भीड़ के ज़रिया वायरस के फैलने की अधिक संभावना होती है। इतनी बात अज्ञानी और अनुभवहीन भी जानते हैं।मुस्लिम डॉक्टरों और नर्सों को अपने समुदाय के भीतर ही मना कर दिया गया था परंतु आज मैं उनसे चिकित्सक दौरे के अवसर के लिए कृतज्ञता की उम्मीद करती हूं । इस वायरस ने आतंक और अराजकता पैदा की है। धार्मिक सभा के संबंध में, कई अन्य लोग भी थे जिनमें और भी अधिक सदस्य और साथ में दावतों में अतिथि भी थे।
The original English version of this interview was written by Asfia Kulsum
Comments
0 comments